One Step Towards Spirituality (part–38)
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल ।
मेरी भाषा के ज्ञान के बिना, मैं नहीं मरता।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की ये पंक्तियाँ पूरी तरह से सार्थक हैं, मातृभाषा का सम्मान किए बिना हमारी प्रगति संभव नहीं है। और अगर दूसरों की भाषा हमारे लिए गर्व का विषय बन गई है, तो समझ लें कि हम अपने सिद्धांतों, संस्कृति और जीवन प्रणाली को नष्ट कर रहे हैं।
किसी भाषा का विरोध करना कोई उद्देश्य नहीं है लेकिन अपनी भाषा का सम्मान करना अनिवार्य है। योग के प्रणेता महर्षि पतंजलि भी 100 भाषाओं के ज्ञाता थे, इसमें कोई आपत्ति नहीं है, यह हमारी क्षमता को दर्शाता है, लेकिन मातृभाषा हमारी उत्पत्ति है, यह हमारी पहचान है, इसके लिए सम्मान होना आवश्यक है।
Pinku
20-Jun-2022 10:53 AM
Nice
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